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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वाङ्गिराः
देवता - जातवेदाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त
त्वा॒ष्ट्रेणा॒हं वच॑सा॒ वि त॑ ई॒र्ष्याम॑मीमदम्। अथो॒ यो म॒न्युष्टे॑ पते॒ तमु॑ ते शमयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वा॒ष्ट्रेण॑ । अ॒हम् । वच॑सा । वि । ते॒ । ई॒र्ष्याम् । अ॒मी॒म॒द॒म् । अथो॒ इति॑ । य: । म॒न्यु: । ते॒ । प॒ते॒ । तम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । श॒म॒या॒म॒सि॒ ॥७८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वाष्ट्रेणाहं वचसा वि त ईर्ष्याममीमदम्। अथो यो मन्युष्टे पते तमु ते शमयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाष्ट्रेण । अहम् । वचसा । वि । ते । ईर्ष्याम् । अमीमदम् । अथो इति । य: । मन्यु: । ते । पते । तम् । ऊं इति । ते । शमयामसि ॥७८.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(पते) हे पति ! (त्वाष्ट्रेण, वचसा) जगत् के घड़ने वाले परमेश्वर के वचन अर्थात् मन्त्र द्वारा (ते) तेरी (ईष्याम्) ईर्ष्या को (अहं वि अमीमदम्) मदरहित मैंने कर दिया है। (अथो) तथा (यः ते मन्युः) जो तेरा कोध है, (तम्, उ ते) उस तेरे क्रोध को (शमयामसि) हम शान्त कर देते हैं।
टिप्पणी -
[त्वष्टा है, जगत् को प्रकृति से घड़कर रचने वाला परमेश्वर, जैसे कि तष्टा अर्थात् बढ़ई, तर्खान, लकड़ी से वस्तुओं को घड़ निकालता है। "त्वष्टा त्वक्षतेर्वा स्यात् कर्मणः" (निरुक्त, त्वष्टा पद (११); ८।२।१४)। त्वक्षू तनूकरणे (भ्वादिः)। यथा "य इमे द्यावापृथिवी जनित्रीरूपैरपिंशद् भुवनानि विश्वा। तमद्य होतरिषितो यजीयान् देवं त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान्” (ऋ० १०।११०।९)। अभिप्राय यह कि त्वष्टा अर्थात् जगद्रचयिता के मन्त्रों में ईर्ष्या के निराकरण सम्बन्धी प्रदर्शित विधियों द्वारा हे पति ! हम तेरी ईर्ष्या के मद अर्थात् उद्रेक को निवारित करते हैं; तथा तेरे मन्यु को अनुनय-विनय द्वारा हम शान्त कर देते हैं। सम्भवतः ईर्ष्या-स्वभाव और गण्डमाला का परस्पर कारण कार्य सम्बन्ध हो]।