Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वाङ्गिराः
देवता - जातवेदाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त
व्र॒तेन॒ त्वं व्र॑तपते॒ सम॑क्तो वि॒श्वाहा॑ सु॒मना॑ दीदिही॒ह। तं त्वा॑ व॒यं जा॑तवेदः॒ समि॑द्धं प्र॒जाव॑न्त॒ उप॑ सदेम॒ सर्वे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठव्र॒तेन॑ । त्वम् । व्र॒त॒ऽप॒ते॒ । सम्ऽअ॑क्त: । वि॒श्वाहा॑ । सु॒ऽमना॑: । दी॒दि॒हि॒ । इ॒ह । तम् । त्वा॒ । व॒यम् । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । सम्ऽइ॑ध्दम् । प्र॒जाऽव॑न्त: । उप॑ । स॒दे॒म॒ । सर्वे॑ ॥७८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
व्रतेन त्वं व्रतपते समक्तो विश्वाहा सुमना दीदिहीह। तं त्वा वयं जातवेदः समिद्धं प्रजावन्त उप सदेम सर्वे ॥
स्वर रहित पद पाठव्रतेन । त्वम् । व्रतऽपते । सम्ऽअक्त: । विश्वाहा । सुऽमना: । दीदिहि । इह । तम् । त्वा । वयम् । जातऽवेद: । सम्ऽइध्दम् । प्रजाऽवन्त: । उप । सदेम । सर्वे ॥७८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(व्रतपते) व्रत की रक्षा करने वाले हे पति ! (त्वम्) तू (व्रतेन) व्रत द्वारा (समक्तः) सम्यक् स्निग्ध हुआ (विश्वाहा) सब दिन अर्थात् सर्वदा (सुमनाः) सुप्रसन्नचित्त हुआ (इह) इस घर में (दीदिहि) चमक। और (जातवेदः) हे जातवेदः अग्नि ! (तम्) उस (समिद्धम्) सम्यक् प्रदीप्त (त्वा) तेरे (उप) समीप (वयम्) हम (प्रजावन्तः) प्रजाओं वाले (सर्वे) सब (सदेम) बैठा करें।
टिप्पणी -
[समक्तः= सम्यक् + अञ्जु व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु (रुधादिः)। म्रक्षण=Annoint, smear (आप्टे), अर्थात् प्रेम द्वारा स्निग्ध। अभिप्राय यह कि जब तेरे क्रोध को हमने शान्त कर दिया मन्त्र (३), तब तू व्रत धारण कर कि फिर मैं क्रोध नहीं करूंगा, इस प्रकार सुप्रसन्नचित्त होकर घर में प्रसन्नता से चमकता रह। और हम सब मिलकर, सन्तानों समेत, यज्ञिय जातवेदा-अग्नि के समीप बैठा करें]। विशेष वक्तव्य-सूक्त ७८ में ४ मन्त्र हैं। प्रथम के दो मन्त्रों में "गन्डमाला" का वर्णन है, और शेष दो मन्त्रों में पति की ईर्ष्या और मन्यु के शमन का और तदनन्तर उसके "सुमनाः" होने का वर्णन हुआ है। इस प्रकार प्रथम "द्विक" का उत्तर "द्विक" के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। सम्भवतः ईर्ष्या, द्वेष, मन्यु आदि मानसिक विकारों और गण्डमाला का परस्पर सम्बन्ध हो।