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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    ओष॑धीरे॒वास्मै॑ रथन्त॒रं दु॑हे॒ व्यचो॑ बृ॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धी: । ए॒व । अ॒स्मै॒ । र॒थ॒मऽत॒रम् । दु॒हे॒ । व्यच॑: । बृ॒हत् ॥११.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधीरेवास्मै रथन्तरं दुहे व्यचो बृहत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधी: । एव । अस्मै । रथमऽतरम् । दुहे । व्यच: । बृहत् ॥११.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 2; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (अस्मै) इसके लिये (रथंतरम्) रथंतर स्तन [पृथिवी] (ओषधीः एव) ओषधियों का ही (दुहे) दोहन करती है (बृहत्) बृहत् स्तन (व्यचः१) विस्तार [अन्तरिक्षरूपी] का [दोहन करता है] (वामदेव्यम्) वामदेव्य स्तन (अपः) जल का [दोहन करता है], (यज्ञायज्ञियं) और यज्ञायज्ञिय स्तन (यज्ञम) यज्ञ का [दोहन करता है], (यः) जो कि (एवम्) इस प्रकार [ओषधि आदि का जीवन के साधन] (वेद) जानता है।

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