अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वामः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
स॒प्त यु॑ञ्जन्ति॒ रथ॒मेक॑चक्र॒मेको॒ अश्वो॑ वहति स॒प्तना॑मा। त्रि॒नाभि॑ च॒क्रम॒जर॑मन॒र्वं यत्रे॒मा विश्वा॒ भुव॒नाधि॑ त॒स्थुः ॥
स्वर सहित पद पाठस॒प्त । यु॒ञ्ज॒न्ति॒ । रथ॑म् । एक॑ऽचक्रम् । एक॑: । अश्व॑: । व॒ह॒ति॒ । स॒प्तऽना॑मा । त्रि॒ऽनाभि॑ । च॒क्रम् । अ॒जर॑म् । अ॒न॒र्वम् । यत्र॑ । इ॒मा । विश्वा॑ । भुव॑ना । अधि॑ । त॒स्थु: ॥१४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा। त्रिनाभि चक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः ॥
स्वर रहित पद पाठसप्त । युञ्जन्ति । रथम् । एकऽचक्रम् । एक: । अश्व: । वहति । सप्तऽनामा । त्रिऽनाभि । चक्रम् । अजरम् । अनर्वम् । यत्र । इमा । विश्वा । भुवना । अधि । तस्थु: ॥१४.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(एक चक्रं रथम्) एकचक्ररूपी रथ को (सप्त युञ्जन्ति) सात अश्व जोतते हैं, वस्तुतः (एकः अश्वः सप्तनामा) एक अश्व जोकि सात अश्वों में परिणत होता है (वहति) सूर्य रथ का वहन करता है। (चक्रम्) रथचक्र (त्रिनाभि) तीन नाभियों वाला है, (अजरम्) जीर्ण नहीं होता, (अनर्वम्) इसके साथ कोई अर्वः अर्थात् प्राणी घोड़ा जुता हुआ नहीं है। (यत्र अधि) जिस रथ में (विश्वा भुवना) सौर परिवार के सब भुवन (तस्थुः) स्थित हैं।
टिप्पणी -
[सूर्य चक्राकार है। यह एकचक्ररूप रथ है। इसमें ७ अश्व लगे हुए हैं। ये हैं रश्मिसप्तक, जोकि वर्षाऋतु में इन्द्र धनुष के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। वस्तुतः इस एक चक्ररथ का एक वहन एक अश्व ही करता है, जोकि शुक्लरश्मि समूह है। यह शुक्लरश्मि ७ रश्मियों में परिणत हो जाती है। तीन नाभियां है ग्रीष्म, वर्षा, तथा शरद् ऋतुएं। कई "एक चक्र रथ" द्वारा "वर्ष चक्र" का कथन करते हैं।]