अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वामः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
पाकः॑ पृच्छामि॒ मन॒साऽवि॑जानन्दे॒वाना॑मे॒ना निहि॑ता प॒दानि॑। व॒त्से ब॒ष्कयेऽधि॑ स॒प्त तन्तू॒न्वि त॑त्निरे क॒वय॒ ओत॒वा उ॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपाक॑: । पृ॒च्छा॒मि॒ । मन॑सा । अवि॑ऽजानन् । दे॒वाना॑म् । ए॒ना । निऽहि॑ता । प॒दानि॑ । व॒त्से । ब॒ष्कये॑ । अधि॑ । स॒प्त । तन्तू॑न् । वि । त॒त्नि॒रे॒ । क॒वय॑: । ओत॒वै । ऊं॒ इति॑ ॥१४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
पाकः पृच्छामि मनसाऽविजानन्देवानामेना निहिता पदानि। वत्से बष्कयेऽधि सप्त तन्तून्वि तत्निरे कवय ओतवा उ ॥
स्वर रहित पद पाठपाक: । पृच्छामि । मनसा । अविऽजानन् । देवानाम् । एना । निऽहिता । पदानि । वत्से । बष्कये । अधि । सप्त । तन्तून् । वि । तत्निरे । कवय: । ओतवै । ऊं इति ॥१४.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 9; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(पाकः) प्रशस्त अर्थात् पवित्र जीवन वाला, परन्तु (मनसा) मन अर्थात् मनन की दृष्टि से (अविजानन्) अज्ञानी (पृच्छामि) में पूछता हूं, जहां कि (देवानाम्) पृथिवी आदि देवों के (एना पदानि) ये पैर (निहिता) स्थापित हैं। (वष्कये) दर्शनीय (वत्से प्रधि) वत्स [आदित्य] में (कवयः) वेदकाव्य के कवि, उन (सप्त) सात पदों को या देवों को, (तन्तून) तन्तुओं के रूप में, (वितेनिरे) विस्तृत हुए कहते हैं, जिनमें कि (ओतवै) बाना डालने के लिये हैं। (उ) वितर्के, बाना के लिये वितर्क? अर्थात् वितर्क करो कि बाना के तन्तु कौन से हैं?
टिप्पणी -
["पाकः प्रशस्यनाम" (निघं० ३।८)। (प्रशस्य जीवन पवित्र होता है। वत्से= आदित्ये, देखो अधोलिखित१ चार्ट। वष्कये= वष्क (दर्शने, चुरादिः) + णिच् +अ। सप्त तन्तून्= बुध, शुक्र, पृथिवी, मङ्गल, बृहस्पति, शनैश्चर, चन्द्र। ये सात तन्तु हैं, "ताना" हैं, वस्त्र बुनने में लम्बाई के तन्तु हैं। और बाना, [ओतवै] हैं चौड़ाई के तन्तु। ताना तो हैं बुध आदि ७। इन में बाना हैं प्राणियों के त्रिविध कर्म, अर्थात् शुक्लकर्म, कृष्ण कर्म, तथा शुक्ल-और-कृष्ण मिश्रित कर्म। ताना के होते भी, बाना के विना, पट नहीं तय्यार हो सकता। मन्त्र में सौरमण्डल अर्थात् सौरपरिवार को पट सदृश कहा है। इस के तय्यार करने के लिये ताना-बाना दोनों की आवश्यकता है। प्राणियों के त्रिविध कर्म जो कि "बाना" रूप है उनके विना, सौरपरिवार रूपी पट किस के लिये हैं। समग्र जगत् भोग-और-अपवर्ग के लिये है, जोकि प्राणियों के कर्मों द्वारा अर्जित होता है।] [१. पृथिवी धेनुः तस्या अग्निर्वत्सः। अन्तरिक्षं धेनुः, तस्य वायुर्वत्सः। द्यौर्धेनुः, तस्या आदित्यो वत्सः। दिशो धेनवः, तासां चन्द्रो वन्सः। अथर्व० ४।३९।२-८॥]