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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 17

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - आसुरी उष्णिक् सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त

    प॑रि॒पाण॑मसि परि॒पाणं॑ मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒ऽपान॑म् । अ॒सि॒ । प॒रि॒ऽपान॑म् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिपाणमसि परिपाणं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिऽपानम् । असि । परिऽपानम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 7

    भाषार्थ -
    [হে পরমেশ্বর !] তুমি (পরিপাণম্) সব প্রকার পালনশক্তি (অসি) হও, (মে) আমাকে (পরিপাণম্) সব প্রকারের পালনশক্তি (দাঃ) প্রদান করো, (স্বাহা) এই আশীর্বাদ হোক ॥৭॥

    भावार्थ - পরমেশ্বরকে অথর্ববেদ ১৯।৬।১। এ (সহস্রবাহুঃ) অনন্ত বাহুর শক্তিশালী/শক্তিসম্পন্ন বলা হয়েছে। মনুষ্য তার অনন্ত রক্ষণশক্তি বিচার করে নিজেও মনুষ্যদের মধ্যে (সহস্রবাহুঃ) মহারক্ষক ও (শতক্রতুঃ) শতকর্মা অর্থাৎ বহুকার্যকর্ত্তা হোক ॥৭॥ ইতি তৃতীয়োঽনুবাকঃ ॥ ইতি তৃতীয়ঃ প্রপাঠকঃ ॥

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