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  • यजुर्वेद - अध्याय 32/ मन्त्र 15
    ऋषिः - मेधाकाम ऋषिः देवता - परमेश्वरविद्वांसौ देवते छन्दः - निचृद् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    मे॒धां मे॒ वरु॑णो ददातु मे॒धाम॒ग्निः प्र॒जाप॑तिः। मे॒धामिन्द्र॑श्च वा॒युश्च॑ मे॒धां धा॒ता द॑दातु मे॒ स्वाहा॑॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मे॒धाम्। मे॒। वरु॑णः। द॒दा॒तु॒। मे॒धाम्। अ॒ग्निः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः ॥ मे॒धाम्। इन्द्रः॑। च॒। वा॒युः। च॒। मे॒धाम्। धा॒ता। द॒दा॒तु॒। मे॒। स्वाहा॑ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मेधाम्मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः । मेधामिन्द्रस्च वायुश्च मेधान्धाता ददातु मे स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मेधाम्। मे। वरुणः। ददातु। मेधाम्। अग्निः। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः॥ मेधाम्। इन्द्रः। च। वायुः। च। मेधाम्। धाता। ददातु। मे। स्वाहा॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 32; मन्त्र » 15
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (वरुणः) अति श्रेष्ठ परमेश्वर वा विद्वान् (स्वाहा) धर्मयुक्त क्रिया से (मे) मेरे लिये (मेधाम्) शुद्ध बुद्धि वा धन को (ददातु) देवे, (अग्निः) विद्या से प्रकाशित (प्रजापतिः) प्रजा का रक्षक (मेधाम्) बुद्धि को देवे, (इन्द्रः) परम ऐश्वर्य्यवान् (मेधाम्) बुद्धि को देवे (च) और (वायुः) बलदाता बलवान् (मेधाम्) बुद्धि को देवे (च) और (धाता) सब संसार वा राज्य का धारण करनेहारा ईश्वर वा विद्वान् (मे) मेरे लिये बुद्धि धन को (ददातु) देवे, वैसे तुम लोगों को भी देवे॥१५॥

    भावार्थ - मनुष्य जैसे अपने लिये गुण, कर्म, स्वभाव और सुख को चाहे वैसे औरों के लिये भी चाहें, जैसे अपनी उन्नति की चाहना करें, वैसे परमेश्वर और विद्वानों के निकट से अन्यों की उन्नति की प्रार्थना करें। केवल प्रार्थना ही न करें, किन्तु सत्य आचरण भी करें। जब-जब विद्वानों के निकट जावें तब-तब सबके कल्याण के लिये प्रश्न और उत्तर किया करें॥१५॥

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