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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - अग्न्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः छन्दः - स्वराट धृति, स्वरः - ऋषभः
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    सोम॑स्य॒ त्विषि॑रसि॒ तवे॑व मे॒ त्विषि॑भूर्यात्। अ॒ग्नये॒ स्वाहा॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑ सवि॒त्रे स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै॒ स्वाहा॑ पू॒ष्णे स्वाहा॒ बृह॒स्पत॑ये॒ स्वाहेन्द्रा॑य॒ स्वाहा॒ घोषा॑य॒ स्वाहा॒ श्लोक॑ाय॒ स्वाहाशा॑य॒ स्वाहा॒ भगा॑य॒ स्वाहा॑र्य॒म्णे स्वाहा॑॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑स्य। त्विषिः॑। अ॒सि॒। तवे॒वेति तव॑ऽइव। मे॒। त्विषिः॑। भू॒या॒त्। अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। सोमा॑य। स्वाहा॑। स॒वि॒त्रे। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। स्वाहा॑। बृह॒स्पत॑ये। स्वाहा॑। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। घोषा॑य। स्वाहा॑। श्लोका॑य। स्वाहा॑। अꣳशा॑य। स्वाहा॑। भगा॑य। स्वाहा॑। अ॒र्य्य॒म्णे स्वाहा॑ ॥५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमस्य त्विषिरसि तवेव मे त्विषिर्भूयात् अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा बृहस्पतये स्वाहेन्द्राय स्वाहा घोषाय स्वाहा श्लोकाय स्वाहाँशाय स्वाहा भगाय स्वाहार्यम्णे स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमस्य। त्विषिः। असि। तवेवेति तवऽइव। मे। त्विषिः। भूयात्। अग्नये। स्वाहा। सोमाय। स्वाहा। सवित्रे। स्वाहा। सरस्वत्यै। स्वाहा। पूष्णे। स्वाहा। बृहस्पतये। स्वाहा। इन्द्राय। स्वाहा। घोषाय। स्वाहा। श्लोकाय। स्वाहा। अꣳशाय। स्वाहा। भगाय। स्वाहा। अर्य्यम्णे स्वाहा॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 5
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    अन्वयः - हे राजन्! यथा त्वं सोमस्य त्विषिरसि तथाऽहमपि भवेयम्। यतस्तवेव मे त्विषिर्भूयाद् यथा भवताऽग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा बृहस्पतये स्वाहेन्द्राय स्वाहा घोषाय स्वाहा श्लोकाय स्वाहांऽशाय स्वाहा भगाय स्वाहाऽर्य्यम्णे च स्वाहा गृह्यते तथा मयापि गृह्यते॥५॥

    पदार्थः -
    (सोमस्य) ऐश्वर्य्यस्य (त्विषिः) ज्योतिः (असि) (तवेव) यथा भवतस्तथा (मे) मम (त्विषिः) विज्ञानप्रकाशः (भूयात्) (अग्नये) विद्युदादये (स्वाहा) सत्यवाक्प्रियाचरणयुक्ता विद्या (सोमाय) औषधविज्ञानाय (स्वाहा) वैद्यकपुरुषार्थविद्या (सवित्रे) सूर्य्यविज्ञानाय (स्वाहा) ज्योतिर्विद्या (सरस्वत्यै) वेदार्थसुक्षाविज्ञापिकायै वाचे (स्वाहा) व्याकरणाद्यङ्गविद्या (पूष्णे) प्राणपशुपालनाय (स्वाहा) योगव्यवहारविद्या (बृहस्पतये) बृहतां प्रकृत्यादीनां पत्युरीश्वरस्य विज्ञानाय (स्वाहा) ब्रह्मविद्या (इन्द्राय) इन्द्रियाधिष्ठातुर्जीवस्य बोधाय (स्वाहा) विवेकविद्या (घोषाय) सत्प्रियभाषणादियुक्तायै वाण्यै (स्वाहा) तथ्योपदेशे वक्तृत्वविद्या (श्लोकाय) तत्त्वसङ्घातसत्काव्यगद्यपद्यछन्दोनिर्माणादिविज्ञानाय (स्वाहा) तत्त्वकाव्यशास्त्रादिविद्या (अंशाय) परमाण्ववगमाय (स्वाहा) सूक्ष्मपदार्थविद्या (भगाय) ऐश्वर्याय (स्वाहा) पुरुषार्थविद्या (अर्य्यम्णे) न्यायाधीशत्वाय (स्वाहा) राजनीतिविद्या॥ अयं मन्त्रः (शत॰ ५। ३। ५। ३-९) व्याख्यातः॥५॥

    भावार्थः - मनुष्यैरिदमाशंसितव्यं यथाऽऽप्तानां राज्ञां शुभगुणस्वभावाः सन्ति, तथैव नो भूयासुरिति॥५॥

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