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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 30
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - क्षत्रपतिर्देवता छन्दः - स्वराट आर्षी जगती, स्वरः - धैवतः
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    स॒वि॒त्रा प्र॑सवि॒त्रा सर॑स्वत्या वा॒चा त्वष्ट्रा॑ रू॒पैः पू॒ष्णा प॒शुभि॒रिन्द्रे॑णा॒स्मे बृह॒स्पति॑ना॒ ब्रह्म॑णा॒ वरु॑णे॒नौज॑सा॒ऽग्निना॒ तेज॑सा॒ सोमे॑न॒ राज्ञा॒ विष्णु॑ना दश॒म्या दे॒वत॑या॒ प्रसू॑तः प्रस॑र्पामि॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒त्रा। प्र॒स॒वि॒त्रेति॑ प्रऽसवि॒त्रा। सर॑स्वत्या। वा॒चा। त्वष्ट्रा॑। रू॒पैः। पू॒ष्णा। प॒शुभि॒रिति॑ प॒शुऽभिः॑। इन्द्रे॑ण। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। बृह॒स्पति॑ना। ब्रह्म॑णा। वरु॑णेन। ओज॑सा। अ॒ग्निना॑। तेज॑सा। सोमे॑न। राज्ञा॑। विष्णु॑ना। द॒श॒म्या। दे॒वत॑या। प्रसू॑त॒ इति॒ प्रऽसू॑तः। प्र। स॒र्पा॒मि॒ ॥३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सवित्रा प्रसवित्रा सरस्वत्या वाचा त्वष्ट्रा रूपैः पूष्णा पशुभिरिन्द्रेणास्मे बृहस्पतिना ब्रह्मणा वरुणेनौजसाग्निना तेजसा सोमेन राज्ञा विष्णुना दशम्या देवतया प्रसूतः प्रसर्पामि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सवित्रा। प्रसवित्रेति प्रऽसवित्रा। सरस्वत्या। वाचा। त्वष्ट्रा। रूपैः। पूष्णा। पशुभिरिति पशुऽभिः। इन्द्रेण। अस्मेऽइत्यस्मे। बृहस्पतिना। ब्रह्मणा। वरुणेन। ओजसा। अग्निना। तेजसा। सोमेन। राज्ञा। विष्णुना। दशम्या। देवतया। प्रसूत इति प्रऽसूतः। प्र। सर्पामि॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 30
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    अन्वयः - हे राजप्रजाजनाः यथाऽहं प्रसवित्रा सवित्रा सरस्वत्या वाचा त्वष्ट्रा रूपैः पूष्णा पशुभिरिन्द्रेणास्मे ब्रह्मणा बृहस्पतिनौजसा वरुणेन तेजसाऽग्निना राज्ञा सोमेन दशम्या देवतया विष्णुना च सह प्रसूतः सन् प्रसर्पामि तथा यूयमपि प्रसर्पध्वम्॥३०॥

    पदार्थः -
    (सवित्रा) प्रेरकेन वायुना (प्रसवित्रा) सकलचेष्टोत्पादकेनेव शुभकर्मणा (सरस्वत्या) प्रशस्तविज्ञानक्रियायुक्त्या (वाचा) वेदवाण्येव सत्यभाषणेन (त्वष्ट्रा) छेदकेन प्रतापिना सूर्य्येणेव न्यायेन (रूपैः) सुखस्वरूपैः (पूष्णा) पृथिव्या। पूषेति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं॰१.१) (पशुभिः) गवादिभिरिव प्रजायाः पालनेन (इन्द्रेण) विद्युदिवैश्वर्येण (अस्मे) अस्माभिः (बृहस्पतिना) बृहतां पालकेन चतुर्वेदविदा विदुषेव विद्यासुशिक्षाप्रचारेण (ब्रह्मणा) वेदार्थज्ञानेन ज्ञापनेनेवोपदेशकेन (वरुणेन) वरेण जलसमूहेनेव शान्त्या (ओजसा) बलेन (अग्निना) पावकेन (तेजसा) तीक्ष्णेन ज्योतिषेव शत्रुदाहकत्वेन (सोमेन) चन्द्रेण प्रकाशमानेनेवाह्लादकत्वेन (राज्ञा) प्रकाशमानेन (विष्णुना) व्यापकेन परमेश्वरेणेव शुभगुणकर्मस्वभावेन (दशम्या) दशानां पूरिकया (देवतया) देदीप्यमानया सह (प्रसूतः) प्रेरितः (प्र) प्रगतः (सर्पामि) चलामि॥ अयं मन्त्रः (शत॰ ५.४.५.२) व्याख्यातः॥३०॥

    भावार्थः - यो जनः सूर्य्यादिगुणयुक्तः पितृवत्प्रजापालकः स्यात्, स राजा भवितुं योग्यः। यश्चैवं पुत्रवद् वर्त्तमानो भवेत् स प्रजा भवितुमर्हति॥३०॥

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