Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 40
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - वीरा देवताः छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    7

    व॒क्ष्यन्ती॒वेदा ग॑नीगन्ति॒ कर्णं॑ प्रि॒यꣳ सखा॑यं परिषस्वजा॒ना।योषे॑व शिङ्क्ते॒ वित॒ताधि॒ धन्व॒ञ्ज्या इ॒यꣳ सम॑ने पा॒रय॑न्ती॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒क्ष्यन्ती॒वेति॑ व॒क्ष्यन्ती॑ऽइव। इत्। आ॒ग॒नी॒गन्ति॒। कर्ण॑म्। प्रि॒यम्। सखा॑यम्। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒ना। प॒रि॒ष॒स्व॒जा॒नेति॑ परिऽसस्वजा॒ना। योषे॒वेति॒ योषा॑ऽइव। शि॒ङ्क्ते॒। वित॒तेति॒ विऽत॑ता। अधि॑। धन्व॑न्। ज्या। इ॒यम्। सम॑ने। पा॒रय॑न्ती ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वक्ष्यन्तीवेदा गनीगन्ति कर्णम्प्रियँ सखायम्परिषस्वजाना । योषेव शिङ्क्ते वितताधि धन्वञ्ज्याऽइयँ समने पारयन्ती ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वक्ष्यन्तीवेति वक्ष्यन्तीऽइव। इत्। आगनीगन्ति। कर्णम्। प्रियम्। सखायम्। परिषस्वजाना। परिषस्वजानेति परिऽसस्वजाना। योषेवेति योषाऽइव। शिङ्क्ते। विततेति विऽतता। अधि। धन्वन्। ज्या। इयम्। समने। पारयन्ती॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 40
    Acknowledgment

    अन्वयः - हे वीराः! येयं वितता धन्वन्नधि ज्या वक्ष्यन्तीवेदागनीगन्ति कर्णं प्रियं सखायं पतिं परिषस्वजाना योषेव शिङ्क्ते समने पारयन्ती वर्त्तते तान्निर्मातुं बद्धुं चालयितुं च विजानीत॥४०॥

    पदार्थः -
    (वक्ष्यन्तीव) यथा वदिष्यन्ती विदुषी स्त्री तथा (इत्) एव (आगनीगन्ति) भृशं बोधं प्रापयन्ति (कर्णम्) श्रुतस्तुतिम् (प्रियम्) कमनीयम् (सखायम्) सुहृद्वद्वर्त्तमानम् (परिषस्वजाना) परितः सर्वतः सङ्गं कुर्वाणा (योषेव) स्त्री (शिङ्क्ते) शब्दयति (वितता) विस्तृता (अधि) उपरि (धन्वन्) धन्वनि (ज्या) प्रत्यञ्चा (इयम्) (समने) समे (पारयन्ती) विजयं प्रापयन्ती॥४०॥

    भावार्थः - अत्र द्व्युपमालङ्कारौ। यदि मनुष्या धनुर्ज्यादिशस्त्रास्त्ररचनसम्बन्धचालनक्रिया विज्ञायेरन्, तर्हीमामुपदेशिकां मातरमिव सुखप्रदां पत्नीं विजयसुखं च प्राप्नुयुः॥४०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top