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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    स नः॑ पावक दीदि॒वोऽग्ने दे॒वाँ२ऽइ॒हा व॑ह। उप॑ य॒ज्ञꣳ ह॒विश्च॑ नः॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः नः॒। पा॒व॒क॒। दी॒दि॒व इति॑ दीदि॒ऽवः। अग्ने॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒। उप॑। य॒ज्ञम्। ह॒विः। च॒। नः॒ ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नः पावक दीदिवो ग्ने देवाँ इहाऽवह । उप यज्ञँ हविश्च नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः नः। पावक। दीदिव इति दीदिऽवः। अग्ने। देवान्। इह। आ। वह। उप। यज्ञम्। हविः। च। नः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 9
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    Meaning -
    O learned person, pure, foe-destroyer, distinguisher of truth from untruth ; just as fire carries afar our fragrant oblations, so dost thou in this world bring hither for us domestic life and learned persons.

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