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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 67
    ऋषिः - देवश्रवदेववातावृषी देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी जगती स्वरः - निषादः
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    ऋचो॒ नामा॑स्मि॒ यजू॑षि॒ नामा॑स्मि॒ सामा॑नि॒ नामा॑स्मि। येऽअ॒ग्नयः॒ पाञ्च॑जन्याऽअ॒स्यां पृ॑थि॒व्यामधि॑। तेषा॑मसि॒ त्वमु॑त्त॒मः प्र नो॑ जी॒वात॑वे सुव॥६७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋचः॑। नाम॑। अ॒स्मि॒। यजू॑षि। नाम॑। अ॒स्मि॒। सामा॑नि। नाम॑। अ॒स्मि॒। ये॒। अ॒ग्नयः॑। पाञ्च॑जन्या॒ इति॒ पाञ्च॑जन्याः। अ॒स्याम्। पृ॒थि॒व्याम्। अधि॑। तेषा॑म्। अ॒सि॒। त्वम्। उ॒त्त॒म इत्यु॑त्ऽत॒मः। प्र। नः॒। जी॒वात॑वे। सु॒व॒ ॥६७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचो नामास्मि यजूँषि नामास्मि सामानि नामास्मि । येऽअग्नयः प्राञ्चजन्या अस्याम्पृथिव्यामधि । तेषामसि त्वमुत्तमः प्र नो जीवतवे सुव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋचः। नाम। अस्मि। यजूषि। नाम। अस्मि। सामानि। नाम। अस्मि। ये। अग्नयः। पाञ्चजन्या इति पाञ्चजन्याः। अस्याम्। पृथिव्याम्। अधि। तेषाम्। असि। त्वम्। उत्तम इत्युत्ऽतमः। प्र। नः। जीवातवे। सुव॥६७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 67
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    Meaning -
    I am Riks by name (Rigveda), I am Yajus, that’s my name (Yajurveda), I am Samans, that’s my name (Samveda) for sure. Yajnagni, five are the sacred fires that are on this earth (namely, Anvaharya-pachana or Dakshina, Garhapatya, Ahavaniya, Sabhya, and Avasthya), which are good and auspicious for all the people without discrimination. Of them, you are the supreme. Awake, arise, come and inspire us for a full life on earth, dedicated to yajna.

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