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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 15
    ऋषिः - देवश्रवदेववातौ भारतावृषी देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    इडा॑यास्त्वा प॒दे व॒यं नाभा॑ पृथि॒व्याऽअधि॑।जात॑वेदो॒ नि धी॑म॒ह्यग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोढ॑वे॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडा॑याः। त्वा॒। प॒दे। व॒यम्। नाभा॑। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑ ॥ जात॑वेद॒ इति॑ जात॑ऽवेदः। नि। धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। ह॒व्याय॑। वोढ॑वे ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडायास्त्वा पदे वयन्नाभा पृथिव्याऽअधि । जातवेदो नि धीमह्यग्ने हव्याय वोढवे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडायाः। त्वा। पदे। वयम्। नाभा। पृथिव्याः। अधि॥ जातवेद इति जातऽवेदः। नि। धीमहि। अग्ने। हव्याय। वोढवे॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 15
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    Meaning -
    Holy fire and omniscient power of light, in the sanctity of the Divine Word, on the centre-vedi of the earth, we instal you and light you in faith for the creation and diffusion of the fragrant materials and means of life in the state of yajna.

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