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अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
    सूक्त - सिन्धुद्वीपं कृतिः, अथवा अथर्वा देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त

    शं नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये॑। शं योर॒भि स्र॑वन्तु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । न॒: । दे॒वी: । अ॒भिष्ट॑ये । आप॑: । भ॒व॒न्तु॒ । पी॒तये॑ ।शम् । यो: । अ॒भि । स्र॒व॒न्तु॒ । न॒: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम् । न: । देवी: । अभिष्टये । आप: । भवन्तु । पीतये ।शम् । यो: । अभि । स्रवन्तु । न: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 6; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (देवीः) दिव्य गुणवाले (आपः) जल [जल के समान उपकारी पुरुष] (नः) हमारे (अभिष्टये) अभीष्ट सिद्धि के लिये और (पीतये) पान वा रक्षा के लिये (शम्) सुखदायक (भवन्तु) होवें। और (नः) हमारे (शम्) रोग की शान्ति के लिये और (योः) भय दूर करने के लिये (अभि) सब ओर से (स्रवन्तु) वर्षा करें ॥१॥

    भावार्थ - वृष्टि से जल के समान उपकारी पुरुष सबके दुःख की निवृत्ति और सुख की प्रवृत्ति में प्रयत्न करते रहें ॥१॥ मन्त्र १, यजुर्वेद ३६।१२। मन्त्र १-३ ऋग्वेद म० १० सू० ९ म० ४, ६, ७। तथा मन्त्र २, ३ ऋग्वेद म० १ सू० २३ म० २०, २१ हैं ॥

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