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अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
    सूक्त - सिन्धुद्वीपम् देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - वर्धमान गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त

    ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम्। अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ईशा॑ना: । वार्या॑णाम् । क्षय॑न्ती: । च॒र्ष॒णी॒नाम् । अ॒प: । या॒चा॒मि॒ । भे॒ष॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईशाना वार्याणां क्षयन्तीश्चर्षणीनाम्। अपो याचामि भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईशाना: । वार्याणाम् । क्षयन्ती: । चर्षणीनाम् । अप: । याचामि । भेषजम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (वार्याणाम्) चाहने योग्य धनों की (ईशानाः) ईश्वरी और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों की (क्षयन्तीः) स्वामिनी (अपः) जलधाराओं [जल के समान उपकारी प्रजाओं] से मैं, (भेषजम्) भय जीतनेवाले ओषध को (याचामि) माँगता हूँ ॥४॥

    भावार्थ - जल से अन्न आदि औषध उत्पन्न होकर मनुष्य के धन और बल का कारण हैं। सो जल के समान गुणी महात्माओं से सहाय लेकर मनुष्यों को आनन्दित रहना चाहिये ॥४॥ यह मन्त्र ऋग्वेद १०।९।५। है ॥

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