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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    सोऽब्र॑वीदास॒न्दीं मे॒ सं भ॑र॒न्त्विति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । अ॒ब्र॒वी॒त् । आ॒ऽस॒न्दीम् । मे॒ । सम् । भ॒र॒न्तु॒ । इति॑ ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोऽब्रवीदासन्दीं मे सं भरन्त्विति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । अब्रवीत् । आऽसन्दीम् । मे । सम् । भरन्तु । इति ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (अब्रवीत्) बोला−(आसन्दीम्) सिंहासन् (मे) मेरे लिये (सम्) मिलकर (भरन्तु इति) आप धरें ॥२॥

    भावार्थ - ऋषि लोग अनुभव करतेहैं कि वह परमात्मा सर्वोपरि विराजकर अपनी महिमा दिखा रहा है ॥२॥

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