अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुर्यनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ऋचः॒प्राञ्च॒स्तन्त॑वो॒ यजूं॑षि ति॒र्यञ्चः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठऋच॑: । प्राञ्च॑: । तन्त॑व: । यजूं॑षि । ति॒र्यञ्च॑ ॥३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋचःप्राञ्चस्तन्तवो यजूंषि तिर्यञ्चः ॥
स्वर रहित पद पाठऋच: । प्राञ्च: । तन्तव: । यजूंषि । तिर्यञ्च ॥३.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
विषय - परमात्मा के विराट् रूप का उपदेश।
पदार्थ -
(ऋचः) ऋचाएँ [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्याएँ] [उस सिंहासन के] (प्राञ्चः) लम्बे फैले हुए (तन्तवः) तन्तु [सूत] और (यजूंषि) यजुर्मन्त्र (तिर्यञ्चः) तिरछे फैले हुए [तन्तु] थे ॥६॥
भावार्थ - जैसे वस्त्र के ताने-बाने में सूत लगते हैं, वैसे ही परमात्मा ने सृष्टिरचना में ऋग्वेद और यजुर्वेदविद्याएँ बनायी हैं ॥६॥
टिप्पणी -
६−(ऋचः) पदार्थविज्ञानप्रकाशिकाविद्याः (प्राञ्चः)प्र+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। प्रकर्षेण प्राप्ताः (तन्तवः) सूत्राणि (यजूंषि)सत्कर्मप्रतिपादकानि ज्ञानानि (तिर्यञ्चः) तिरस्+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्।तिर्यग्भवास्तन्तवः ॥