अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
सामा॑सा॒दउ॑द्गी॒थोऽप॑श्र॒यः ॥
स्वर सहित पद पाठसाम॑ । आ॒ऽसा॒द: । उ॒त्ऽगी॒थ: । उ॒प॒ऽश्र॒य: ॥३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
सामासादउद्गीथोऽपश्रयः ॥
स्वर रहित पद पाठसाम । आऽसाद: । उत्ऽगीथ: । उपऽश्रय: ॥३.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
विषय - परमात्मा के विराट् रूप का उपदेश।
पदार्थ -
(साम) सामवेद [मोक्षज्ञान] (आसादः) [उस सिंहासन का] बैठने का स्थान और (उद्गीथः) उद्गीथ [अच्छे प्रकार गाने योग्य शब्द] (अपश्रयः) सहारा था ॥८॥
भावार्थ - जैसे सिंहासन मेंबैठने का स्थान और बैठनेवाले के सुख के लिये सहारे होते हैं, वैसे ही परमात्माने विद्वानों के लिये मुक्तिज्ञान और प्रणव का जप बनाया है ॥८॥
टिप्पणी -
८−(साम)मोक्षज्ञानम् (आसादः) आङ्+षद्लृ गतौ-घञ्। स्थितिस्थानम् (उद्गीथः) गश्चोदि। उ०२।१०। उत्+गै गाने-थक्। उच्चैर्गीयमानः सामध्वनिः प्रणवो वा (अपश्रयः) अप+श्रिञ्सेवायाम्-अच्। आश्रयः ॥