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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 4/ मन्त्र 11
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    शा॑र॒दौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वञ्छ्यै॒तं च॑ नौध॒सं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शा॒र॒दौ । मासौ॑ । गो॒प्तारौ॑ । अकु॑र्वन् । श्यै॒तम् । च॒ । नौ॒ध॒सम् । च॒ । अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑ ॥४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शारदौ मासौगोप्तारावकुर्वञ्छ्यैतं च नौधसं चानुष्ठातारौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शारदौ । मासौ । गोप्तारौ । अकुर्वन् । श्यैतम् । च । नौधसम् । च । अनुऽस्थातारौ ॥४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 4; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (शारदौ) शरद् ऋतुवाले [आश्विन-कार्तिक] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (च) और (श्यैतम्) श्यैत [सद्गति बतानेवाले वेदज्ञान] को (च) और (नौधसम्) नौधस [ऋषियों के हितकारी मोक्षज्ञान] को (अनुष्ठातारौ) दोअनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥११॥

    भावार्थ - मन्त्र १-३ के समान है॥१०-–१२॥

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