अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - प्राजापत्या गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
तस्मै॑प्र॒तीच्या॑ दि॒शः ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑ । प्र॒तीच्या॑: । दि॒श: ॥४.७॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मैप्रतीच्या दिशः ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मै । प्रतीच्या: । दिश: ॥४.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 4; मन्त्र » 7
विषय - परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।
पदार्थ -
(तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिमी दिशा से ॥७॥
भावार्थ - मन्त्र १-३ के समान है॥७-९॥
टिप्पणी -
७−(तस्मै) विदुषे (प्रतीच्याः) पश्चिमायाः (दिशः) ॥