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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 22
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - परोष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स दिशोऽनु॒व्यचल॒त्तं वि॒राडनु॒ व्यचल॒त्सर्वे॑ च दे॒वाः सर्वा॑श्च दे॒वताः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । दिश॑: । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् । तम् । वि॒ऽराट् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् । सर्वे॑ । च॒ । दे॒वा: । सर्वा॑ । च॒ । दे॒वता॑: ॥६.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स दिशोऽनुव्यचलत्तं विराडनु व्यचलत्सर्वे च देवाः सर्वाश्च देवताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । दिश: । अनु । वि । अचलत् । तम् । विऽराट् । अनु । वि । अचलत् । सर्वे । च । देवा: । सर्वा । च । देवता: ॥६.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 22

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (दिशः अनु) सब दिशाओं की ओर (वि अचलत्) विचरा, (विराट्) विराट् [विविधपदार्थों से प्रकाशमान ब्रह्माण्डरूप संसार] (तम् अनु) उस [व्रात्य परमात्मा] केपीछे (वि अचलत्) विचरा, (च) और (सर्वे) सब (देवाः) दिव्यपदार्थ (च) और (सर्वाः)सब (देवताः) दिव्य शक्तियाँ [उसके पीछे विचरीं] ॥२२॥

    भावार्थ - यह संसार, दिव्यपदार्थऔर उनकी दिव्यशक्तियाँ परमात्मा से सब दिशाओं में प्रसिद्ध हुई हैं, उस परमात्माको साक्षात् करनेवाला मनुष्य सब उत्तम पदार्थों और गुणों का विवेकी होकर संसारका प्रिय होता है ॥˜२˜२, २३॥

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