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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - त्रिपदा निचृत गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स म॑हि॒मासद्रु॑र्भू॒त्वान्तं॑ पृथि॒व्या अ॑गच्छ॒त्स स॑मु॒द्रोऽभ॑वत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । म॒हि॒मा । सद्रु॑: । भू॒त्वा । अन्त॑म् । पृ॒थि॒व्या: । अ॒ग॒च्छ॒त् । स: । स॒मु॒द्र: । अ॒भ॒व॒त् ॥७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स महिमासद्रुर्भूत्वान्तं पृथिव्या अगच्छत्स समुद्रोऽभवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । महिमा । सद्रु: । भूत्वा । अन्तम् । पृथिव्या: । अगच्छत् । स: । समुद्र: । अभवत् ॥७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (महिमा) महिमास्वरूप और (सद्रुः) वेगवान् (भूत्वा) होकर (पृथिव्याः)पृथिवी के (अन्तम्) अन्त को (अगच्छत्) पहुँचा है, (सः) वह [परमात्मा] (समुद्रः)अन्तरिक्षरूप [अनादि, अनन्त] (अभवत्) हुआ है ॥१॥

    भावार्थ - परमात्मा अपनी बड़ाईके कारण विद्वानों को पृथिवी से आगे अन्तरिक्ष के समान अनादि अनन्त जान पड़ता है॥१॥

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