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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 11
    सूक्त - अप्रतिरथः देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - एकवीर सूक्त

    अ॒स्माक॒मिन्द्रः॒ समृ॑तेषु ध्व॒जेष्व॒स्माकं॒ या इष॑व॒स्ता ज॑यन्तु। अ॒स्माकं॑ वी॒रा उत्त॑रे भवन्त्व॒स्मान्दे॑वासोऽवता॒ हवे॑षु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्माक॑म्। इन्द्रः॑। सम्ऽऋ॑तेषु। ध्व॒जेषु॑। अ॒स्माक॑म्। याः। इष॑वः। ताः। ज॒य॒न्तु॒। अ॒स्माक॑म्। वी॒राः। उत्ऽत॑रे। भ॒व॒न्तु॒। अ॒स्मान्। दे॒वा॒सः॒। अ॒व॒त॒। हवे॑षु ॥१३.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु। अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्मान्देवासोऽवता हवेषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्माकम्। इन्द्रः। सम्ऽऋतेषु। ध्वजेषु। अस्माकम्। याः। इषवः। ताः। जयन्तु। अस्माकम्। वीराः। उत्ऽतरे। भवन्तु। अस्मान्। देवासः। अवत। हवेषु ॥१३.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (ध्वजेषु) ध्वजाओं के (समृतेषु) मिल जाने पर (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी सेनापति] (अस्माकम्) हमारा है, (अस्माकम्) हमारे (याः) जो (इषवः) बाण हैं, (ताः) वे (जयन्तु) जीतें (अस्माकम्) हमारे (वीराः) वीर (उत्तरे) अधिक ऊँचे (भवन्तु) होवें, (देवासः) हे देवो ! [विजय चाहनेवाले शूरो] (हवेषु) ललकार के स्थानों [सङ्ग्रामों] में (अस्मान्) हमें (अवत) बचाओ ॥११॥

    भावार्थ - जब युद्ध होने लगे और दोनों ओर की ध्वजाएँ परस्पर मिल जावें, सब वीर पुरुष मुख्य सेनापति की जय मनाते हुए, अस्त्र-शस्त्र चलाते हुए आगे बढ़ें और शत्रुओं को मारकर प्रजा की रक्षा करें ॥११॥

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