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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 9
    सूक्त - अप्रतिरथः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - एकवीर सूक्त

    इन्द्र॑ एषां ने॒ता बृह॒स्पति॒र्दक्षि॑णा य॒ज्ञः पु॒र ए॑तु॒ सोमः॑। दे॑वसे॒नाना॑मभिभञ्जती॒नां जय॑न्तीनां म॒रुतो॑ यन्तु॒ मध्ये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। ए॒षा॒म्। ने॒ता। बृह॒स्पतिः॑। दक्षि॑णा। य॒ज्ञः। पु॒रः। ए॒तु॒। सोमः॑। दे॒व॒ऽसे॒नाना॑म्। अ॒भि॒ऽभ॒ञ्ज॒ती॒नाम्। जय॑न्तीनाम्। म॒रुतः॑। य॒न्तु॒। मध्ये॑ ॥१३.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र एषां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः। देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्तु मध्ये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। एषाम्। नेता। बृहस्पतिः। दक्षिणा। यज्ञः। पुरः। एतु। सोमः। देवऽसेनानाम्। अभिऽभञ्जतीनाम्। जयन्तीनाम्। मरुतः। यन्तु। मध्ये ॥१३.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी मुख्य सेनापति] (एषाम्) इन [वीरों] का (नेता) नेता [होवे], (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े अधिकारों का स्वामी सेनानायक] (दक्षिणा) दाहिनी ओर और (यज्ञः) पूजनीय, (सोमः) सोम [प्रेरक, उत्साहक सेनाधिकारी] (पुरः) आगे (एतु) चले। (मरुतः) मरुद्गण [शूरवीर पुरुष] (अभिभञ्जतीनाम्) कुचल डालती हुई, (जयन्तीनाम्) विजयिनी (देवसेनानाम्) विजय चाहनेवालों की सेनाओं के (मध्ये) बीच में (यन्तु) चलें ॥९॥

    भावार्थ - व्यूहरचना में अपनी-अपनी सेना लेकर मुख्य सेनापति की दाहिनी ओर को बृहस्पति नाम सेनाधिकारी हो, सोम नाम सेनाध्यक्ष सबसे आगे और अन्य मरुद्गण शूरवीर योद्धा बीच में रहे। इसी प्रकार चक्रव्यूह, पद्मव्यूह आदि अनेक व्यूहरचनाओं से शत्रुओं को जीतें ॥९॥

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