अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 44/ मन्त्र 8
ब॒ह्वि॒दं रा॑जन्वरु॒णानृ॑तमाह॒ पूरु॑षः। तस्मा॑त्सहस्रवीर्य मु॒ञ्च नः॒ पर्यंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठस्वर रहित मन्त्र
बह्विदं राजन्वरुणानृतमाह पूरुषः। तस्मात्सहस्रवीर्य मुञ्च नः पर्यंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठ अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 8
विषय - ब्रह्म की उपासना का उपदेश।
पदार्थ -
(राजन्) हे राजन् (वरुण) वरुण ! [सर्वश्रेष्ठ परमात्मन्] (पुरुषः) पुरुष (इदम्) अब (बहु) बहुत (अनृतम्) असत्य (आह) बोलता है। (सहस्रवीर्य) हे सहस्र प्रकार के पराक्रमवाले ! [तस्मात्] उस (अंहसः) पाप से (नः) हमें (परि) सर्वथा (मुञ्च) छुड़ा ॥८॥
भावार्थ - मनुष्य परमात्मा को साक्षी करके असत्य कभी न बोले ॥८॥
टिप्पणी -
८−(बहु) (इदम्) इदानीम् (राजन्) हे सर्वशासक (वरुण) हे सर्वश्रेष्ठ परमात्मन् (अनृतम्) असत्यम् (आह) ब्रूते (पुरुषः) मनुष्यः (तस्मात्) निर्दिष्टात् (सहस्रवीर्य) हे अपरिमितपराक्रमवन् (मुञ्च) मोचय (नः) अस्मान् (परि) सर्वथा (अंहसः) पापात् ॥