अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 4
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप्
सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त
आयु॑र॒स्यायु॑र्मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआयु॑: । अ॒सि॒ । आयु॑: । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुरस्यायुर्मे दाः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठआयु: । असि । आयु: । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 4
विषय - आयु बढ़ाने के लिये उपदेश।
पदार्थ -
[हे ईश्वर !] तू (आयुः) आयु [जीवनशक्ति] (असि) है, (मे) मुझे (आयुः) आयु (दाः) दे, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥४॥
भावार्थ - ईश्वर ने हमें अन्न, बुद्धि, ज्ञान आदि जीवनसामग्री देकर बड़ा उपकार किया है, ऐसे ही हम भी परस्पर उपकार से अपना जीवन बढ़ावें ॥४॥
टिप्पणी -
४–आयुः। अ० १।३०।३। इण् गतौ–उसि, स च णित्। जीवनम्। जीवनकारणम् ॥