अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप्
सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त
श्रोत्र॑मसि॒ श्रोत्रं॑ मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश्रोत्र॑म् । अ॒सि॒ । श्रोत्र॑म् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रोत्रमसि श्रोत्रं मे दाः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठश्रोत्रम् । असि । श्रोत्रम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
विषय - आयु बढ़ाने के लिये उपदेश।
पदार्थ -
[हे ईश्वर !] तू (श्रोत्रम्) श्रवणशक्ति (असि) है, (मे) मुझे (श्रवणम्) श्रवणशक्ति (दाः) दे, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥५॥
भावार्थ - परमेश्वर अपनी अनन्त श्रवणशक्ति से हमारी टेर सुनता और संकटों को काटता है। ऐसे ही हम अपनी श्रवणशक्ति को नीरोग रखकर दूसरों के दुःखों का निवारण करें और वेदादि शास्त्रों का श्रवण करें ॥५॥
टिप्पणी -
५–श्रोत्रम्। हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति श्रु गतिश्रुत्योः–त्रन्। श्रवणेन्द्रियम्। कर्णम् ॥