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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - प्राणः, अपानः, आयुः छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप् सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त
    58

    श्रोत्र॑मसि॒ श्रोत्रं॑ मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्रोत्र॑म् । अ॒सि॒ । श्रोत्र॑म् । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रोत्रमसि श्रोत्रं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्रोत्रम् । असि । श्रोत्रम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु बढ़ाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे ईश्वर !] तू (श्रोत्रम्) श्रवणशक्ति (असि) है, (मे) मुझे (श्रवणम्) श्रवणशक्ति (दाः) दे, (स्वाहा) यह सुन्दर आशीर्वाद हो ॥५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर अपनी अनन्त श्रवणशक्ति से हमारी टेर सुनता और संकटों को काटता है। ऐसे ही हम अपनी श्रवणशक्ति को नीरोग रखकर दूसरों के दुःखों का निवारण करें और वेदादि शास्त्रों का श्रवण करें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५–श्रोत्रम्। हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति श्रु गतिश्रुत्योः–त्रन्। श्रवणेन्द्रियम्। कर्णम् ॥

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    विषय

    श्रोत्र

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार मुझे दीर्घजीवन तो प्रास हो ही, परन्तु उस दीर्घजीवन में मेरी इन्द्रियाँ क्षीणशक्ति न हो जाएँ, अत: भक्त कहता है-हे प्रभो! आप (श्रोत्रम् असि) = सम्पूर्ण श्रवणशक्ति के स्रोत हैं, (मे) = मेरे लिए (श्रोत्रं दा:) = श्रोत्रशक्ति दीजिए। (स्वाहा) = मैं सदा इस उत्तम प्रार्थना को करनेवाला बनूँ। २. दीर्घजीवन में यदि मेरी श्रवणशक्ति मेरा साथ न दे तो ज्ञानवृद्धि न कर सकता हुआ मैं उस दीर्घजीवन का क्या करूँगा, केवल खाने-पीने का जीवन तो प्रशस्त जीवन नहीं है।

    भावार्थ

    अपने दीर्घ जीवन में श्रोत्रशक्ति-सम्पन्न बनकर मैं बहुश्नुत बनें।

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    भाषार्थ

    (श्रोत्रम् असि) तू श्रोत्ररूप है, (मे श्रोत्रम् दाः) मुझे श्रवणशक्ति प्रदान कर, (स्वाहा) सु आह।

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    विषय

    ओज, सहनशीलता, बल, आयु और इन्द्रियों की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप (श्रोत्रम् असि) सब की शुभ प्रार्थनाओं का श्रवण करने हारे और सबको श्रवणशक्ति के दाता हैं। (मे श्रोत्रं दाः) मुझे भी श्रवणशक्ति का दान करें, (स्वाहा) मैं ऐसी शुभ प्रार्थना करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः । प्राणापानौ वायुश्च देवताः । १-६ एकावसाना आसुर्यस्त्रिष्टुभः । ७ आसुरी उष्णिक् । सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elan Vital at the Full

    Meaning

    You are universal power of the ear. Give me the power of hearing for the divine Word. This is the voice of truth in faith.

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    Translation

    You are power of hearing (rostra). May you bestow power of hearing on me. Svāhā.

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    Translation

    O God! Thou art the. Power of audibility, give me Power Of audibility. What a beautiful utterance.

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    Translation

    O God, Ear art Thou, give me hearing! This is my humble prayer.[1]

    Footnote

    [1] God listens to the supplications of mankind. I should listen to the Vedas and the request of the poor, needy persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–श्रोत्रम्। हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति श्रु गतिश्रुत्योः–त्रन्। श्रवणेन्द्रियम्। कर्णम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (শ্রোত্রম্ অসি) তুমি শ্রোত্ররূপ, (মে শ্রোত্রম্ দাঃ) আমাকে শ্রবণ শক্তি প্রদান করো, (স্বাহা) সু আহ।

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    मन्त्र विषय

    আয়ুর্বর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে ঈশ্বর !] তুমি (শ্রোত্রম্) শ্রবণশক্তি (অসি) হও, (মে) আমাকে (শ্রবণম্) শ্রবণশক্তি (দাঃ) প্রদান করো, (স্বাহা) এই সুন্দর আশীর্বাদ হোক ॥৫॥

    भावार्थ

    পরমেশ্বর নিজের অনন্ত শ্রবণশক্তি দ্বারা আমাদের শব্দ শ্রবণ করেন এবং সংকট মোচন করেন। এভাবেই আমরা নিজেদের শ্রবণশক্তি নীরোগ রেখে অপরের দুঃখের নিবারণ করি এবং বেদাদি শাস্ত্রের শ্রবণ করি॥৫॥

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