Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 36

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    सूक्त - पतिवेदनः देवता - अग्नीषोमौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पतिवेदन सूक्त

    इ॒यम॑ग्ने॒ नारी॒ पतिं॑ विदेष्ट॒ सोमो॒ हि राजा॑ सु॒भगां॑ कृ॒णोति॑। सुवा॑ना पु॒त्रान्महि॑षी भवाति ग॒त्वा पतिं॑ सु॒भगा॒ वि रा॑जतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । अ॒ग्ने॒ । नारी॑ । पति॑म् । वि॒दे॒ष्ट॒ । सोम॑: । हि । राजा॑ । सु॒ऽभगा॑म् । कृ॒णोति॑ । सुवा॑ना । पु॒त्रान् । महि॑षी । भ॒वा॒ति॒ । ग॒त्वा । पति॑म् । सु॒ऽभगा॑ । वि । रा॒ज॒तु॒ ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयमग्ने नारी पतिं विदेष्ट सोमो हि राजा सुभगां कृणोति। सुवाना पुत्रान्महिषी भवाति गत्वा पतिं सुभगा वि राजतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । अग्ने । नारी । पतिम् । विदेष्ट । सोम: । हि । राजा । सुऽभगाम् । कृणोति । सुवाना । पुत्रान् । महिषी । भवाति । गत्वा । पतिम् । सुऽभगा । वि । राजतु ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 36; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (इयम्) यह (नारी) नर [अपने पति] का हित करनेवाली कन्या (पतिम्) पति को (विदेष्ट) प्राप्त करे, (हि) क्योंकि (सोमः) ऐश्वर्यवान् वा चन्द्रसमान आनन्दप्रद (राजा) राजा [ऐश्वर्यवान् वर] [इसको] (सुभगाम्) सौभाग्यवती (कृणोति) करता है। [यह कन्या] (पुत्रान्) कुलशोधक वा बहुरक्षक वीरपुत्रों को (सुवाना) उत्पन्न करती हुई (महिषी) पूजनीय महारानी (भवाति) होवे और (पतिम्) पति को (गत्वा) पाकर (सुभगा) सौभाग्यवती होकर (वि) अनेक प्रकार से (राजतु) राज्य करे ॥३॥

    भावार्थ - परमेश्वर के अनुग्रह से ये दोनों पति और पत्नी, बड़े ऐश्वर्य वा ठाटवाले राजा और रानी के समान गृहकार्यों को चलावें और वीर पुत्र-पौत्र आदिकों को उत्तम शिक्षा देते हुए सदा आनन्द भोगें ॥३॥ मनु महाराज ने कहा है–अ० ३।६०। संतुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्रा भार्या तथैव च। यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ॥१॥ भार्या से भर्त्ता और भर्त्ता से भार्या, जिस कुल में संतुष्ट हों, वहाँ पर अवश्य ही नित्य कल्याण रहता है ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top