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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 107

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 107/ मन्त्र 9
    सूक्त - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१०७

    नि तद्द॑धि॒षेऽव॑रे॒ परे॑ च॒ यस्मि॒न्नावि॒थाव॑सा दुरो॒णे। आ स्था॑पयत मा॒तरं॑ जिग॒त्नुमत॑ इन्वत॒ कर्व॑राणि॒ भूरि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । तत् । द॒धि॒षे॒ । अव॑रे । परे॑ । च॒ । यस्म‍ि॑न् । आवि॑थ । अव॑सा । दु॒रो॒णे ॥ आ । स्था॒प॒य॒त॒ । मा॒तर॑म् । जि॒ग॒त्नु॒म् । अत॑: । इ॒न्व॒त॒ । कर्व॑राणि । भूरि॑ ॥१०७.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि तद्दधिषेऽवरे परे च यस्मिन्नाविथावसा दुरोणे। आ स्थापयत मातरं जिगत्नुमत इन्वत कर्वराणि भूरि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि । तत् । दधिषे । अवरे । परे । च । यस्म‍िन् । आविथ । अवसा । दुरोणे ॥ आ । स्थापयत । मातरम् । जिगत्नुम् । अत: । इन्वत । कर्वराणि । भूरि ॥१०७.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 107; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    [हे परमात्मन् !] (अवरे) छोटे (च) और (परे) बड़े मनुष्य में (तत्) उस [घर] को (नि) निश्चय करके (दधिषे) तूने पोषण किया है, (यस्मिन्) जिस (दुरोणे) कष्ट से भरने योग्य घर में (अवसा) अन्न से (आविथ) तूने रक्षा की है। [हे मनुष्यो !] (जिगत्नुम्) सर्वव्यापक (मातरम्) माता [परमेश्वर] को (आ) भली-भाँति (स्थापयत) [हृदय में] ठहराओ और (अतः) इसी से (भूरि) बहुत से (कर्वराणि) कर्मों को (इन्वत) सिद्ध करो ॥९॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर की उपासनापूर्वक अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके अपने सब काम सिद्ध करें ॥९॥

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