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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 140

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 140/ मन्त्र 2
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १४०

    आ नू॒नम॒श्विनो॒रृषि॒ स्तोमं॑ चिकेत वा॒मया॑। आ सोमं॒ मधु॑मत्तमं घ॒र्मं सि॑ञ्चा॒दथ॑र्वणि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नू॒नम् । अ॒श्विनो॑: । ऋषि॑: । स्तोम॑म् । चि॒के॒त॒ । वा॒मया॑ ॥ आ । सोम॑म् । मधु॑मत्ऽतमम् । घ॒र्मम् । सि॒ञ्चा॒त् । अथ॑र्वणि ॥१४०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नूनमश्विनोरृषि स्तोमं चिकेत वामया। आ सोमं मधुमत्तमं घर्मं सिञ्चादथर्वणि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नूनम् । अश्विनो: । ऋषि: । स्तोमम् । चिकेत । वामया ॥ आ । सोमम् । मधुमत्ऽतमम् । घर्मम् । सिञ्चात् । अथर्वणि ॥१४०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 140; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (ऋषिः) ऋषि [विज्ञानी पुरुष] (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] के (स्तोमम्) स्तुतियोग्य कर्म को (वामया) उत्तम बुद्धि से (नूनम्) अवश्य (आ) सब ओर से (चिकेत) जाने। और (मधुमत्तमम्) अत्यन्त ज्ञानवाले और (घर्मम्) प्रकाशवाले (सोमम्) सोम [तत्त्व रस] को (अथर्वणि) निश्चल [जिज्ञासु] पर (आ) भले प्रकार (सिञ्चात्) सींचे ॥२॥

    भावार्थ - विज्ञानी पुरुष काल की महिमा जानकर जिज्ञासुओं को तत्त्वज्ञान का उपदेश करे ॥२॥

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