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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 35

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 35/ मन्त्र 14
    सूक्त - नोधाः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३५

    अ॒स्येदु॑ भि॒या गि॒रय॑श्च दृ॒ढा द्यावा॑ च॒ भूमा॑ ज॒नुष॑स्तुजेते। उपो॑ वे॒नस्य॒ जोगु॑वान ओ॒णिं स॒द्यो भु॑वद्वी॒र्याय नो॒धाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य । इत् । ऊं॒ इति॑ । भि॒या । गि॒रय॑: । च॒ । दृ॒ह्ला: । द्यावा॑ । च॒ । भूम॑ । ज॒नुष॑: । तु॒जे॒ते॒ इति॑ ॥ उपो॒ इति॑ । वे॒नस्य॑ । जोगु॑वान: । ओ॒णिम् । स॒द्य: । भु॒व॒त् । वी॒र्या॑य । नो॒धा: ॥३५.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्येदु भिया गिरयश्च दृढा द्यावा च भूमा जनुषस्तुजेते। उपो वेनस्य जोगुवान ओणिं सद्यो भुवद्वीर्याय नोधाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य । इत् । ऊं इति । भिया । गिरय: । च । दृह्ला: । द्यावा । च । भूम । जनुष: । तुजेते इति ॥ उपो इति । वेनस्य । जोगुवान: । ओणिम् । सद्य: । भुवत् । वीर्याय । नोधा: ॥३५.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 35; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (अस्य) इस (जनुषः) उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] के (इत्) ही (उ) निश्चय करके (भिया) भय से (गिरयः) पहाड़ (च) भी (दृढाः) दृढ़ हैं, (च) और (द्यावा भूमा) सूर्य और भूमि (तुजेते) बलवान् हैं। (वेनस्य) प्यारे [वा बुद्धिमान् परमेश्वर] के (ओणिम्) दुःख मिटाने को (जोगुवानः) बार-बार कहता हुआ (नोधाः) नेताओं [वा स्तुतियों] का धारण करनेवाला [सभापति] (सद्यः) तुरन्त (वीर्याय) पराक्रम सिद्ध करने के लिये (उपो) समीप ही (भुवत्) होवे ॥१४॥

    भावार्थ - जो परमात्मा अपने अनन्त सामर्थ्य से सब लोकों को नियमपूर्वक अपने-अपने काम के लिये समर्थ बनाता है, सभाध्यक्ष आदि उस जगदीश्वर का आश्रय लेकर अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥१४॥

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