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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 10
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑। शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जन्ति॑ । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । हरी॒ इति॑ । विऽप॑क्षसा । रथे॑ । शोणा॑ । धृ॒ष्णू इति॑ । नृ॒ऽवाह॑सा ॥६९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जन्ति । अस्य । काम्या । हरी इति । विऽपक्षसा । रथे । शोणा । धृष्णू इति । नृऽवाहसा ॥६९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (अस्य) इस [परमात्मा-म० ९] के (काम्या) चाहने योग्य, (विपक्षसा) विविध प्रकार ग्रहण करनेवाले, (शेणा) व्यापक, (धृष्णू) निर्भय, (नृवाहसा) नेताओं [दूसरों के चलानेवाले सूर्य आदि लोकों] के चलानेवाले (हरी) दोनों धारण-आकर्षण गुणों को (रथे) रमणीय जगत् के बीच (युञ्जन्ति) वे [प्रकाशमान पदार्थ-म० ९] ध्यान में रखते हैं ॥१०॥

    भावार्थ - जिस परमात्मा के धारण आकर्षण-सामर्थ्य में सूर्य आदि पिण्ड अन्य लोकों और प्राणियों को चलाते हैं, मनुष्य उन सब पदार्थों से उपकार लेकर उस ईश्वर को धन्यवाद दें ॥१०॥

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