अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 11
के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥
स्वर सहित पद पाठके॒तुम् । कृ॒ण्वन् । अ॒के॒तवे॑ । पेश॑: । म॒र्या॒: । अ॒पे॒शसे॑ ॥ सम् । उ॒षत्ऽभि॑: । अ॒जा॒य॒था॒: ॥६९.११॥
स्वर रहित मन्त्र
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः ॥
स्वर रहित पद पाठकेतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । पेश: । मर्या: । अपेशसे ॥ सम् । उषत्ऽभि: । अजायथा: ॥६९.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 11
विषय - ९-११ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ -
(मर्याः) हे मनुष्यो ! (अकेतवे) अज्ञान हटाने के लिये (केतुम्) ज्ञान को और (अपेशसे) निर्धनता मिटाने के लिये (पेशः) सुवर्ण आदि धन को (कृण्वन्) उत्पन्न करता हुआ वह [परमात्मा-म० ९, १०] (उषद्भिः) प्रकाशमान गुणों के साथ (सम्) अच्छे प्रकार (अजायथाः) प्रकट हुआ है ॥११॥
भावार्थ - मनुष्य प्रयत्न करके परमात्मा को विचारते हुए सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेकर ज्ञानी और धनी होवें ॥११॥
टिप्पणी -
९-११−एते मन्त्रा आगताः-अ० २०।२६।४-६ तथा ४७।१०-१२ ॥