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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 77

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 77/ मन्त्र 6
    सूक्त - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७७

    विश्वा॑नि श॒क्रो नर्या॑णि वि॒द्वान॒पो रि॑रेच॒ सखि॑भि॒र्निका॑मैः। अश्मा॑नं चि॒द्ये बि॑भि॒दुर्वचो॑भिर्व्र॒जं गोम॑न्तमु॒शिजो॒ वि व॑व्रुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वा॑नि । श॒क्र । नर्या॑णि । वि॒द्वान् । अ॒प: । रि॒रे॒च॒ । सखि॑ऽभि: । निऽका॑मै: ॥ अश्मा॑नम् । चि॒त् । ये । बि॒भि॒दु: । वच॑ऽभि । व्र॒जम् । गोऽम॑न्तम् । उ॒शिज॑: । वि । व॒व्रु॒रिति॑ । वव्रु: ॥७७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वानपो रिरेच सखिभिर्निकामैः। अश्मानं चिद्ये बिभिदुर्वचोभिर्व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वानि । शक्र । नर्याणि । विद्वान् । अप: । रिरेच । सखिऽभि: । निऽकामै: ॥ अश्मानम् । चित् । ये । बिभिदु: । वचऽभि । व्रजम् । गोऽमन्तम् । उशिज: । वि । वव्रुरिति । वव्रु: ॥७७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 77; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (विद्वान्) विद्वान् (शक्रः) शक्तिवाले [इन्द्र मनुष्य] ने (निकामैः) निश्चित कामनावाले (सखिभिः) मित्रों के साथ (विश्वानि) सब (नर्याणि) नेताओं के हितकारी (अपः) कर्मों को (रिरेच) फैलाया है। (ये) जिन [बुद्धिमानों] ने (वचोभिः) अपने वचनों से (अश्मानम्) व्यापक विघ्न [अथवा मेघ के समान अन्धकार फैलानेवाले शत्रु] को (चित्) निश्चय करके (बिभिदुः) तोड़ा-फोड़ा है, (उशिजः) उन बुद्धिमानों ने (गोमन्तम्) वेदवाणीवाले (व्रजम्) मार्ग को (विवव्रुः) खोल दिया है ॥६॥

    भावार्थ - राजा को योग्य है कि सत्यवादी पराक्रमी मित्रों के साथ अज्ञान का नाश करके विद्या की वृद्धि से प्रजापालन करे ॥६॥

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