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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 88

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 88/ मन्त्र 5
    सूक्त - वामदेवः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८८

    स सु॒ष्टुभा॒ स ऋक्व॑ता ग॒णेन॑ व॒लं रु॑रोज फलि॒गं रवे॑ण। बृह॒स्पति॑रु॒स्रिया॑ हव्य॒सूदः॒ कनि॑क्रद॒द्वाव॑शती॒रुदा॑जत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । सु॒ऽस्तु॒भा॑ । स: । ऋक्व॑ता । ग॒णेन॑ । व॒लम् । रु॒रो॒ज॒ । फ॒लि॒ऽगम् । र॒वे॑ण ॥ बृह॒स्पति॑: । उ॒स्रिया॑: । ह॒व्य॒ऽसूद॑: । कनि॑क्रदत् । वाव॑शती: । उत् । आ॒ज॒त् ॥८८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुष्टुभा स ऋक्वता गणेन वलं रुरोज फलिगं रवेण। बृहस्पतिरुस्रिया हव्यसूदः कनिक्रदद्वावशतीरुदाजत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । सुऽस्तुभा । स: । ऋक्वता । गणेन । वलम् । रुरोज । फलिऽगम् । रवेण ॥ बृहस्पति: । उस्रिया: । हव्यऽसूद: । कनिक्रदत् । वावशती: । उत् । आजत् ॥८८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 88; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (सः सः) उसी ही [वीर पुरुष] ने (सुष्टुभा) बड़ी स्तुतिवाले (ऋक्वता) पूजनीय वाणीवाले (गणेन) समुदाय के साथ (फलिगम्) फूट डालनेवाले [वा मेघ के समान अन्धकार के फैलानेवाले] (वलम्) हिंसक वैरी को (रवेण) शब्द [धर्म घोषणा] (रुरोज) भङ्ग किया है। (हव्यसूदः) देने वा लेने योग्य पदार्थों की प्रतिज्ञा करनेवाले, (कनिक्रदत्) बल से पुकारते हुए (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं के रक्षक मनुष्य] ने (वावशतीः) अत्यन्त कामना करती हुई (उस्रियाः) रहनेवाली प्रजाओं को (उत् आजत्) ऊँचा किया है ॥॥

    भावार्थ - विद्वान् सभापति राजा अज्ञान फैलानेवाले शत्रुओं का नाश करके विद्या और धन की वृद्धि से प्रजा का पालन करें ॥॥

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