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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 19/ मन्त्र 7
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवाः, चन्द्रमाः, इन्द्रः छन्दः - विराडास्तारपंक्तिः सूक्तम् - अजरक्षत्र

    प्रेता॒ जय॑ता नर उ॒ग्रा वः॑ सन्तु बा॒हवः॑। ती॒क्ष्णेष॑वोऽब॒लध॑न्वनो हतो॒ग्रायु॑धा अब॒लानु॒ग्रबा॑हवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । इ॒त॒ । जय॑त । न॒र॒: । उ॒ग्रा: । व॒: । स॒न्तु॒ । बा॒हव॑: । ती॒क्ष्णऽइ॑षव: । अ॒ब॒लऽध॑न्वन: । ह॒त॒ । उ॒ग्रऽआ॑युधा: । अ॒ब॒लान् । उ॒ग्रऽबा॑हव: ॥१९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रेता जयता नर उग्रा वः सन्तु बाहवः। तीक्ष्णेषवोऽबलधन्वनो हतोग्रायुधा अबलानुग्रबाहवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । इत । जयत । नर: । उग्रा: । व: । सन्तु । बाहव: । तीक्ष्णऽइषव: । अबलऽधन्वन: । हत । उग्रऽआयुधा: । अबलान् । उग्रऽबाहव: ॥१९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 19; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (नरः) हे नरो (प्र इत) धावा करो, (जयत) जीतो ! (वः) तुम्हारी (बाहवः) भुजायें (उग्राः) प्रचण्ड [कट्टर] (सन्तु) होवें। (तीक्ष्णेषवः) हे तीखे बाणवाले ! (उग्रायुधाः) हे कट्टर हथियारोंवाले (उग्रबाहवः) हे कट्टर भुजाओंवाले वीरों ! (अबलधन्वनः) निर्बल धनुषवाले (अबलान्) निर्बल [शत्रुओं] को (हत) मारो ॥७॥

    भावार्थ - ‘प्रेता जयता’ पदों में दीर्घत्व उत्साह के लिए है। सेनापति की आज्ञा से सब सैनिक लोग उमंग के साथ मारू बजाते गाते धावा करके तुच्छ वैरियों को मारें ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद १०।१०३।१३। और यजुर्वेद १७।४६ में है ॥

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