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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 20

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 20/ मन्त्र 7
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - अर्यमा, बृहस्पतिः, इन्द्रः, वातः, विष्णुः, सरस्वती, सविता, वाजी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रयिसंवर्धन सूक्त

    अ॑र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय। वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्य॒मण॑म् । बृह॒स्पति॑म् । इन्द्र॑म् । दाना॑य । चो॒द॒य॒ । वात॑म् । विष्णु॑म् । सर॑स्वतीम् । स॒वि॒तार॑म् । च॒ । वा॒जिन॑म् ॥२०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं दानाय चोदय। वातं विष्णुं सरस्वतीं सवितारं च वाजिनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्यमणम् । बृहस्पतिम् । इन्द्रम् । दानाय । चोदय । वातम् । विष्णुम् । सरस्वतीम् । सवितारम् । च । वाजिनम् ॥२०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 20; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    [हे ईश्वर !] (अर्यमणम्) वैरियों के रोकनेवाले राजा, (बृहस्पतिम्) बड़े बड़ों के रक्षक गुरु और (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष और (वातम्) पवन, (विष्णुम्) यज्ञ, (च) और (वाजिनम्) वेगवाले, वा अन्नवाले, वा बलवाले (सवितारम्) लोकों के चलानेवाले सूर्य से (सरस्वतीम्) विज्ञानों के भण्डार सरस्वती, वेदविद्या को (दानाय) दान के लिये (चोदय) प्रवृत्त कर ॥७॥

    भावार्थ - ईश्वरभक्त (अर्यमा) राजा वा सेनापति, (बृहस्पति) प्रधान आचार्य और (इन्द्र) दण्डनेता वा कोषाध्यक्ष आदि अधिकारी अपने-२ पदों पर दृढ़ रहकर पवन, सूर्य, अग्नि, जल, पृथिवी आदि अद्भुत पदार्थों द्वारा वेदविज्ञान फैलावें ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद अ० ९ म० २७ में है ॥ मनु महाराज ने लिखा है−सैनापत्यं च राज्यं च दण्डनेतृत्वमेव च। सर्वलोकाधिपत्यं च वेदशास्त्रविदर्हति ॥ मनु० १२।१० ॥ वेद शास्त्र का जाननेवाला पुरुष, सेनापति के पद, राजा के पद, और दण्डदाता के पद और सब लोगों पर आधिपत्य [चक्रवर्ति राज्य] के योग्य होता है ॥७॥

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