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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 20

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - सोमः, अग्निः, आदित्यः, विष्णुः, ब्रह्मा, बृहस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रयिसंवर्धन सूक्त

    सोमं॒ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे। आ॑दि॒त्यं विष्णुं॒ सूर्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑म् । राजा॑नम् । अव॑से । अ॒ग्निम् । गी॒:ऽभि: । ह॒वा॒म॒हे॒ । आ॒दि॒त्यम् । विष्णु॑म् । सूर्य॑म् । ब्र॒ह्माण॑म् । च॒ । बृह॒स्पति॑म् ॥२०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमं राजानमवसेऽग्निं गीर्भिर्हवामहे। आदित्यं विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमम् । राजानम् । अवसे । अग्निम् । गी:ऽभि: । हवामहे । आदित्यम् । विष्णुम् । सूर्यम् । ब्रह्माणम् । च । बृहस्पतिम् ॥२०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 20; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (अवसे) रक्षा के लिए (गीर्भिः) स्तुतियों से (सोमम्) ऐश्वर्य के कारण, (राजानम्) सबके शासक (अग्निम्) विद्वान् (आदित्यम्) बड़े दीप्यमान, (विष्णुम्) सबमें व्यापक, (सूर्यम्) चलानेवाले, (ब्रह्माणम्) सबमें बड़े वेदप्रकाशक ब्रह्मा (च) और (बृहस्पतिम्) बड़े बड़ों के रक्षक बृहस्पति [परमेश्वर वा मनुष्य] को (हवामहे) हम बुलाते हैं ॥४॥

    भावार्थ - सब मनुष्य जगदीश्वर के गुण, कर्म स्वभाव के ज्ञान और बड़े लोगों के आश्रय से अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद ९।२६ में है ॥

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