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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - त्वष्टा छन्दः - विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त

    त्वष्टा॑ दुहि॒त्रे व॑ह॒तुं यु॑न॒क्तीती॒दं विश्वं॒ भुव॑नं॒ वि या॑ति। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्टा॑ । दु॒हि॒त्रे । व॒ह॒तुम् । यु॒न॒क्ति॒ । इति॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । भुव॑नम् । वि । या॒ति॒ । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टा दुहित्रे वहतुं युनक्तीतीदं विश्वं भुवनं वि याति। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टा । दुहित्रे । वहतुम् । युनक्ति । इति । इदम् । विश्वम् । भुवनम् । वि । याति । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी पिता (दुहित्रे) बेटी को (वहतुम्) दायज [स्त्री धन] (युनक्ति=वि युनक्ति) अलग करके देता है। (इति) इसी प्रकार (इदम् विश्वम्) यह प्रत्येक (भुवनम्) लोक (वि याति) अलग-अलग चलता है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से... [म० १] ॥५॥

    भावार्थ - जैसे पिता पुत्री को दायज देकर सदा हित करता रहता है, सब लोक और पदार्थ अलग-अलग रहकर परस्पर उपकार करते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष हटाकर परस्पर सुख बढ़ावें ॥५॥ इस मन्त्र का पूर्वार्ध ऋग्वेद १०।१७१।१। में इस प्रकार है−त्वष्टा॑ दुहि॒त्रे वह॒तुं कृ॑णो॒तीतीदं विश्वं॒ भुव॑नं॒ समे॑ति ॥ (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी पिता (दुहित्रे) बेटी के लिये (वहतुम्) दायज (कृणोति) करता है, (इति) इस प्रकार (इदम् विश्वम् भुवनम्) यह सब जगत् (समेति) मिलकर चलता है ॥

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