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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    सूक्त - मृगारः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    यस्य॑ व॒शास॑ ऋष॒भास॑ उ॒क्षणो॒ यस्मै॑ मी॒यन्ते॒ स्वर॑वः स्व॒र्विदे॑। यस्मै॑ शु॒क्रः पव॑ते॒ ब्रह्म॑शुम्भितः॒ स नो॑ मुञ्च॒त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । व॒शास॑: । ऋ॒ष॒भास॑: । उक्ष॒ण:॑ । यस्मै॑ । मी॒यन्ते॑ । स्वर॑व:। स्व॒:ऽविदे॑ । यस्मै॑ । शु॒क्र: । पव॑ते । ब्रह्म॑ऽशुम्भित: । स: । न॒: । मु॒ञ्च॒तु॒ । अंह॑स: ॥२४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य वशास ऋषभास उक्षणो यस्मै मीयन्ते स्वरवः स्वर्विदे। यस्मै शुक्रः पवते ब्रह्मशुम्भितः स नो मुञ्चत्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । वशास: । ऋषभास: । उक्षण: । यस्मै । मीयन्ते । स्वरव:। स्व:ऽविदे । यस्मै । शुक्र: । पवते । ब्रह्मऽशुम्भित: । स: । न: । मुञ्चतु । अंहस: ॥२४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 24; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (यस्य) जिस परमेश्वर के (वशासः) वशीभूत होकर (ऋषभासः) धर्म जाननेवाले ऋषि लोग (उक्षणः) सुख की वर्षा करनेवाले होते हैं, और (यस्मै) जिस (स्वर्विदे) सुख प्राप्त करानेवाले के लिये (स्वरवः) जयस्तम्भ (मीयन्ते) गाड़े जाते हैं। (यस्मै) जिसके लिये (ब्रह्मशुम्भितः) वेदों से कहा गया (शुक्रः) निर्मल सोम रस [अमृत वा मोक्षानन्द] (पवते) शुद्ध किया जाता है। (सः) वह (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चतु) छुड़ावे ॥४॥

    भावार्थ - जिस परमात्मा की आज्ञापालन से ऋषि महात्मा वेदों का उपदेश करके संसार को सुख देते हैं और शूरवीर लोग शत्रुओं पर जय पाते हैं और ब्रह्मज्ञानी मोक्ष सुख प्राप्त करते हैं, वही परमात्मा हमारे कष्टों को मिटावे ॥४॥

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