Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 37

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 12
    सूक्त - बादरायणिः देवता - अजशृङ्ग्योषधिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त

    जा॒या इद्वो॑ अप्स॒रसो॒ गन्ध॑र्वाः॒ पत॑यो यू॒यम्। अप॑ धावतामर्त्या॒ मर्त्या॒न्मा स॑चध्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जा॒या: । इत् । व॒: । अ॒प्स॒रस॑: । गन्ध॑र्वा: । पत॑य: । यू॒यम् ।अप॑ । धा॒व॒त॒ । अ॒म॒र्त्या॒: । मर्त्या॑न् । मा । स॒च॒ध्व॒म् ॥३७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जाया इद्वो अप्सरसो गन्धर्वाः पतयो यूयम्। अप धावतामर्त्या मर्त्यान्मा सचध्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जाया: । इत् । व: । अप्सरस: । गन्धर्वा: । पतय: । यूयम् ।अप । धावत । अमर्त्या: । मर्त्यान् । मा । सचध्वम् ॥३७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    (गन्धर्वाः) हे वेदवाणी वा पृथिवी के धारण करनेवाले पुरुषो ! (अप्सरसः) आकाश आदि में व्यापक शक्तियाँ (वः) तुम्हारे लिये (इत्) ही (जायाः) सुख उत्पन्न करनेवाली हैं (यूयम्) तुम [उनके] (पतयः) रक्षक [बनो]। (अप) आनन्द से (धावत) धावो और (अमर्त्याः) हे अमर [नित्य उत्साही] पुरुषो ! (मर्त्यान्) मरते हुए [निरुत्साही] मनुष्यों के हित करनेवाले पुरुषों को (मा=मया) लक्ष्मी के साथ (सचध्वम्) सदा मिले ॥१२॥

    भावार्थ - परमेश्वर की अनन्त अद्भुत शक्तियाँ संसार में उपस्थित हैं, उत्साही पुरुष उनसे उपकार लेकर सदा परस्पर उन्नति करें ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top