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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 5/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वृषभः, स्वापनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्वापन सूक्त

    प्रो॑ष्ठेश॒यास्त॑ल्पेश॒या नारी॒र्या व॑ह्य॒शीव॑रीः। स्त्रियो॒ याः पुण्य॑गन्धय॒स्ताः सर्वाः॑ स्वापयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रो॒ष्ठे॒ऽश॒या: । त॒ल्पे॒ऽश॒या: । नारी॑: । या: । व॒ह्य॒ऽशीव॑री: । स्रिय॑: । या: । पुण्य॑ऽगन्धय: । ता: । सर्वा॑: । स्वा॒प॒या॒म॒सि॒ ॥५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रोष्ठेशयास्तल्पेशया नारीर्या वह्यशीवरीः। स्त्रियो याः पुण्यगन्धयस्ताः सर्वाः स्वापयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रोष्ठेऽशया: । तल्पेऽशया: । नारी: । या: । वह्यऽशीवरी: । स्रिय: । या: । पुण्यऽगन्धय: । ता: । सर्वा: । स्वापयामसि ॥५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (प्रोष्ठेशयाः) बड़े घर वा बड़े आंगन में सोनेवाली, (तल्पेशयाः) खाटों पर सोनेवाली, और (वह्यशीवरीः=०-र्यः) हिंडोला आदि में सोनेवाली (याः) जो (नारीः=नार्यः) नारियाँ हैं, और (याः) जो (स्त्रियः) स्त्रियाँ (पुण्यगन्धयः) पुण्य गतिवाली हैं, (ताः सर्वाः) उन सबको (स्वापयामसि=०-मः) हम सुलाते हैं ॥३॥

    भावार्थ - गृहस्थ लोग स्त्रियों के रहने के घर ऐसे उत्तम बनावें, जिससे रात्री को वे सुखपूर्वक सोया करें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋ० ७।५५।८ में है ॥

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