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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 141

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 141/ मन्त्र 1
    सूक्त - विश्वामित्र देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गोकर्णलक्ष्यकरण सूक्त

    वा॒युरे॑नाः स॒माक॑र॒त्त्वष्टा॒ पोषा॑य ध्रियताम्। इन्द्र॑ आभ्यो॒ अधि॑ ब्रवद्रु॒द्रो भू॒म्ने चि॑कित्सतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒यु: । ए॒ना॒: । स॒म्ऽआक॑रत् । त्वष्टा॑ । पोषा॑य । ध्रि॒य॒ता॒म् । इन्द्र॑: । आ॒भ्य॒: । अधि॑ । ब्र॒व॒त् । रु॒द्र: । भू॒म्ने । चि॒कि॒त्स॒तु॒ ॥१४१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायुरेनाः समाकरत्त्वष्टा पोषाय ध्रियताम्। इन्द्र आभ्यो अधि ब्रवद्रुद्रो भूम्ने चिकित्सतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायु: । एना: । सम्ऽआकरत् । त्वष्टा । पोषाय । ध्रियताम् । इन्द्र: । आभ्य: । अधि । ब्रवत् । रुद्र: । भूम्ने । चिकित्सतु ॥१४१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 141; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (वायुः) शीघ्रगामी आचार्य (एनाः) इन [प्रजाओं] को (समाकरत्) एकत्र करे, (त्वष्टा) सूक्ष्मदर्शी वह (पोषाय) [उनके मानसिक और शारीरिक] पोषण के लिये (ध्रियताम्) स्थिर रहे। (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला वही (आभ्यः) इन [प्रजाओं] से (अधि) अनुग्रहपूर्वक (ब्रवत्) बोले, (रुद्रः) ज्ञानदाता अध्यापक (भूम्ने) उनकी वृद्धि के लिये (चिकित्सतु) शासन करे ॥१॥

    भावार्थ - जितेन्द्रिय दूरदर्शी आचार्य विद्यालय में ब्रह्मचारियों को उत्तम विद्या से समृद्ध करे ॥१॥

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