Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 141

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 141/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्र देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गोकर्णलक्ष्यकरण सूक्त

    यथा॑ च॒क्रुर्दे॑वासु॒रा यथा॑ मनु॒ष्या उ॒त। ए॒वा स॑हस्रपो॒षाय॑ कृणु॒तं लक्ष्मा॑श्विना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । च॒क्रु॒: । दे॒व॒ऽअ॒सु॒रा: । यथा॑ । म॒नु॒ष्या᳡: । उ॒त । ए॒व । स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षाय॑ । कृ॒णु॒तम् । लक्ष्म॑ । अ॒श्वि॒ना॒ ॥१४१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा चक्रुर्देवासुरा यथा मनुष्या उत। एवा सहस्रपोषाय कृणुतं लक्ष्माश्विना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । चक्रु: । देवऽअसुरा: । यथा । मनुष्या: । उत । एव । सहस्रऽपोषाय । कृणुतम् । लक्ष्म । अश्विना ॥१४१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 141; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यथा) जैसे (देवासुराः) व्यवहार जाननेवाले बुद्धिमानों ने (उत) और (यथा) जैसे (मनुष्याः) मननशील पुरुषों ने [शुभलक्षण को] (चक्रुः) किया है। (अश्विना) हे कर्तव्यों में व्यापक माता-पिता ! (एव) वैसे ही (सहस्रपोषाय) सहस्रों प्रकार के पोषण के लिये [हम में] (लक्ष्म) शुभलक्षण (कृणुतम्) तुम करो ॥३॥

    भावार्थ - माता-पिता को योग्य है कि पूर्वज महात्माओं के समान अपने सन्तानों को शुभगुणी बनावे ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top