Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 3

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - आर्ची बृहती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    तस्मा॑त्पि॒तृभ्यो॑ मा॒स्युप॑मास्यं ददति॒ प्र पि॑तृ॒याणं॒ पन्थां॑ जानाति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त् । पि॒तृऽभ्य॑: । मा॒सि । उप॑ऽमास्यम् । द॒द॒ति॒ । प्र । पि॒तृ॒ऽयान॑म् । पन्था॑म् । जा॒ना॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥ १२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मात्पितृभ्यो मास्युपमास्यं ददति प्र पितृयाणं पन्थां जानाति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात् । पितृऽभ्य: । मासि । उपऽमास्यम् । ददति । प्र । पितृऽयानम् । पन्थाम् । जानाति । य: । एवम् । वेद ॥ १२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 3; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (तस्मात्) इसी कारण (पितृभ्यः) ऋतुओं को [वा ऋतुओं से] (मासि) महीने-महीने (उपमास्यम्) चन्द्रमा में रहनेवाले अमृत को वे [ईश्वरनियम] (ददति) देते हैं, वह (पितृयाणम्) ऋतुओं के चलने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र जानाति) जान लेता है (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥४॥

    भावार्थ - ऋतुओं के गुणों को जानकर मनुष्य ऋतुओं की सूक्ष्म अवस्था जान लेता है ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top