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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - आर्ची बृहती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    तस्मा॑द्दे॒वेभ्यो॑ऽर्धमा॒से वष॑ट्कुर्वन्ति॒ प्र दे॑व॒यानं॒ पन्थां॑ जानाति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त् । दे॒वेभ्य॑: । अ॒र्ध॒ऽमा॒से । वष॑ट् । कु॒र्व॒न्ति॒ । प्र । दे॒व॒ऽयान॑म् । पन्था॑म् । जा॒ना॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्माद्देवेभ्योऽर्धमासे वषट्कुर्वन्ति प्र देवयानं पन्थां जानाति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात् । देवेभ्य: । अर्धऽमासे । वषट् । कुर्वन्ति । प्र । देवऽयानम् । पन्थाम् । जानाति । य: । एवम् । वेद॥१२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 3; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (तस्मात्) इसलिये (देवेभ्यः) किरणों को [वा किरणों से] (अर्धमासे) आधे महीने में (वषट्) रस पहुँचाना वे [ईश्वरनियम] (कुर्वन्ति) करते हैं, वह (देवयानम्) किरणों के जाने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र जानाति) जान लेता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥६॥

    भावार्थ - ब्रह्मज्ञानी पुरुष किरणों और अर्धमास आदि के सम्बन्ध को यथावत् जान लेता है ॥६॥

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