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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    सूक्त - चातनः देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त

    इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वस्पर्य॑ग्नित॒प्तेभि॑र्यु॒वमश्म॑हन्मभिः। तपु॑र्वधेभिर॒जरे॑भिर॒त्त्रिणो॒ नि पर्शा॑ने विध्यतं॒ यन्तु॑ निस्व॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑सोमा । व॒र्तय॑तम् । दि॒व: । परि॑ । अ॒ग्नि॒ऽत॒प्तेभि॑: । यु॒वम् । अश्म॑हन्मऽभि: । तपु॑:ऽवधेभि: । अ॒जरे॑भि: । अ॒त्त्रिण॑: । नि । पर्शा॑ने । वि॒ध्य॒त॒म् । यन्तु॑ । नि॒ऽस्व॒रम् ॥४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर्युवमश्महन्मभिः। तपुर्वधेभिरजरेभिरत्त्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रासोमा । वर्तयतम् । दिव: । परि । अग्निऽतप्तेभि: । युवम् । अश्महन्मऽभि: । तपु:ऽवधेभि: । अजरेभि: । अत्त्रिण: । नि । पर्शाने । विध्यतम् । यन्तु । निऽस्वरम् ॥४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (इन्द्रासोमा) हे सूर्य और चन्द्र [समान राजा और मन्त्री !] (युवम्) तुम दोनों (दिवः) आकाश से (अग्नितप्तेभिः) अग्नि से तपाये हुए, (अश्महन्मभिः) मेघ के समान चलनेवाले [अथवा फैलनेवाले पदार्थों पत्थर, लोहे आदि से मार करनेवाले] (अजरेभिः) अजर [अटूट] (तपुर्वधेभिः) तपा देनेवाले हथियारों से (अत्त्रिणः) खाऊ लोगों को (परि वर्तयतम्) लुढ़कवा दो, (पर्शाने) गढ़े के बीच (नि विध्यतम्) छेद डालो, वे लोग (निस्वरम्) चुप्पी (यन्तु) प्राप्त करें ॥५॥

    भावार्थ - सेनापति लोग वायुयानों में चढ़ कर आकाश से आग्नेय हथियारों द्वारा शत्रुओं को मार गिरावें ॥५॥

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