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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 4/ मन्त्र 21
    सूक्त - चातनः देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त

    इन्द्रो॑ यातू॒नाम॑भवत्पराश॒रो ह॑वि॒र्मथी॑नाम॒भ्या॒विवा॑सताम्। अ॒भीदु॑ श॒क्रः प॑र॒शुर्यथा॒ वनं॒ पात्रे॑व भि॒न्दन्त्स॒त ए॑तु र॒क्षसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । या॒तू॒नाम् । अ॒भ॒व॒त् । प॒रा॒ऽश॒र: । ह॒वि॒:ऽमथी॑नाम् । अ॒भि । आ॒ऽविवा॑सताम् । अ॒भि । इत् । ऊं॒ इति॑ । श॒क्र: । प॒र॒शु: । यथा॑ । वन॑म् । पात्रा॑ऽइव । भि॒न्दन् । स॒त: । ए॒तु॒ । र॒क्षस॑: ॥४.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो यातूनामभवत्पराशरो हविर्मथीनामभ्याविवासताम्। अभीदु शक्रः परशुर्यथा वनं पात्रेव भिन्दन्त्सत एतु रक्षसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । यातूनाम् । अभवत् । पराऽशर: । हवि:ऽमथीनाम् । अभि । आऽविवासताम् । अभि । इत् । ऊं इति । शक्र: । परशु: । यथा । वनम् । पात्राऽइव । भिन्दन् । सत: । एतु । रक्षस: ॥४.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 21

    पदार्थ -
    (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला राजा (हविर्मथीनाम्) ग्राह्य अन्न आदि पदार्थों के मथनेवाले [हलचल करनेवाले], (आविवासताम्) समीप निवासी (यातूनाम्) पीड़ा देनेवालों का (पराशरः) कुचलनेवाला (अभि) सब ओर से (अभवत्) हुआ है। (शक्रः) शक्तिमान् राजा (इत् उ) (अभि) सब ओर से (अभवत्) हुआ है। (शक्रः) शक्तिमान् राजा (इत् उ) अवश्य ही, (परशुः) कुल्हाड़ा (यथा) जैसे (वनम्) वन को, (पात्रा इव) पात्रों के समान (भिन्दन्) तोड़ता हुआ, (सतः) विद्यमान (रक्षसः) राक्षसों पर (अभि एतु) चढ़ाई करे ॥२१॥

    भावार्थ - पूर्वज पराक्रमी राजाओं के समान तेजस्वी राजा शत्रुओं का नाश करे, जैसे कुल्हाड़े से वन को काटते हैं अथवा मिट्टी के बासन को लाठी से तोड़ते हैं ॥२१॥

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