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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
    सूक्त - प्रजापति देवता - आर्ची अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    शि॒वान॒ग्नीन॑प्सु॒षदो॑ हवामहे॒ मयि॑ क्ष॒त्रं वर्च॒ आ ध॑त्त दे॒वीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वान् । अ॒ग्नीन् । अ॒प्सु॒ऽसद॑: । ह॒वा॒म॒हे॒ । मयि॑ । क्ष॒त्रम् । वर्च॑: । आ । ध॒त्त॒ । दे॒वी॒: ॥१.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवानग्नीनप्सुषदो हवामहे मयि क्षत्रं वर्च आ धत्त देवीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिवान् । अग्नीन् । अप्सुऽसद: । हवामहे । मयि । क्षत्रम् । वर्च: । आ । धत्त । देवी: ॥१.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 1; मन्त्र » 13

    Meaning -
    We invoke the divine light of mind and divine fire of will and action vibrant in the divine waters and radiant in the light divine. O divine showers of light and grace, consecrate me with splendour as individual and as the human social order.

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